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Breeds and General Information of Chickens

"Breeds and General Information of Chickens || Animal Attendant || Animal Attendant Rajasthan"



मुर्गियों की सामान्य जानकारी

मुर्गियों की सामान्य जानकारी

वैज्ञानिक नाम: ग्लैस डोमेस्टिका

कुल: फेसीओलिएडी

विभाग: रज्जुकी

गण: गेलीफोर्म

वर्ग: पक्षी

गुणसूत्र संख्या (2n): 78

मुर्गी के समूह को: झुंड / फ्लॉक कहते हैं

मुर्गी के शरीर का तापमान: 41.7℃ या 107°f

मुर्गा को: cock कहते हैं

मुर्गी को: hen कहते हैं

मुर्गी के नवजात बच्चे को: चिक / चूजा कहते हैं

मुर्गी की प्रसव क्रिया को: हैचिंग कहते हैं

8 सप्ताह से 1 वर्ष के नर चूजे को: कोकरेल / कोकरिलस कहते हैं

8 सप्ताह से 1 वर्ष के मादा चूजे को: पुलेट कहते हैं

मुर्गी के मांस को: चिकन कहते हैं

बंधियाकृत नर को: केपन कहते हैं

मुर्गे को बँधीयकरण करने की प्रक्रिया को: केपोनाइजेशन कहलाती है

मुर्गी खरीदते समय उपयुक्त आयु: 8 सप्ताह से 20 सप्ताह

मुर्गी के प्रजनन के लिए उपयुक्त आयु: 5 से 6 माह

मुर्गी के शरीर का सबसे बड़ा अंग: गिजार्ड कहलाता है

मुर्गी के एक अंडे का वजन:

  • 58 gm (देशी)
  • 62 gm (फार्मिंग)

अंडे से चूजा बाहर आने में समय: 21 दिन लगते हैं

मुर्गी के अंडे का पीला रंग किसके कारण: जेन्थोफ़िल होता है

अंडे का कवच किसका बनता: केल्सियम कार्बोनेट (94%)

मुर्गी के अंडों पर छिद्रों की संख्या: 600 से 800

मुर्गी के अंडे में वायुकोष कितने सेंटीमीटर से बड़ा नहीं होना चाहिए: ½ cm

एक अंडे में श्वेतक कितना होता: 34gm / 58%

एक अंडे में जर्दी कितनी होती: 18 gm / 31%

एक अंडे से कितने कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती: 80 कैलोरी

सर्दियों में अंडा संग्रहण की अवधि: 7 दिन

गर्मियों में अंडा संग्रहण की अवधि: 3 दिन

अंडे से चूजे में फैलने वाली बीमारी: लेयुकोसिस

अंडे सेने का उपयुक्त समय: फेब-मार्च

अंडे सेने का उपयुक्त तापमान: 37.5℃

एक देशी मुर्गी (कड़कनाथ) एक साथ कितने अंडे सेय सकती है: 8 से 9 अंडे

अंडे देने वाली मुर्गी को प्रकाश की आवश्यकता: 14 से 16 घंटे / दिन

अंडा संग्रहण करते समय कौन सा भाग नीचे रखा जाता है: पतला वाला भाग / ऊपर वाला भाग

अंडा संग्रहण करते समय 2 अंडे के मध्य कितनी दूरी: 1.25 cm

अंडे के आंतरिक गुणों का अध्ययन किससे किया जाता है: केण्डलर

इनक्यूबेटर में अंडे रखते समय उसका तापमान कितना होना चाहिए: 100°F

केण्डलर की सहायता से अंडों की जांच: 5 से 7 वे दिन तथा 15 से 16 वे दिन करनी चाहिए

इनक्यूबेटर या ब्रूडर में अधिक नमी होने पर (लगभग 70% से अधिक): खूनी पेचिश (कोकसीडियम) रोग हो जाता है

कृत्रिम विधि में प्रकृतिक विधि की तुलना में चूजे निकालने का प्रतिशत अधिक होता है:

  • कृत्रिम विधि में – 85%
  • प्रकृतिक विधि में – 40%

अंडे से चूजे बाहर आने के कितने समय बाद आहार दिया जाता है: 72 घंटे बाद

चूजे खरीदने का उपयुक्त समय: फेब-मार्च

इनक्यूबेटर में अंडे रखने से पहले उसे: 20 gm प्रति वर्ग मीटर फार्मेल्डिहाइड से धमक कर लेना चाहिए

मुर्गी के दड़बा को: कूप कहते हैं

1 से 6 सप्ताह की मुर्गी को: डे ओल्ड चिक

8 से 12 सप्ताह की मुर्गी को: ब्रॉयलर (मांस हेतु) कहते हैं

ब्रॉयलर का वजन: 1.5 से 2 kg

ब्रॉयलर के स्थान: 0.5 से 1 वर्ग मीटर

एक दिन से लेकर 4 सप्ताह तक के चूजों का आवास / पालन: दड़बा या ब्रूडर

4 सप्ताह से 8 सप्ताह के चूजों का पालन: रीयरिंग

8 सप्ताह से अधिक आयु के चूजों का पालन: ग्रोवर मैनेजमेंट कहलाता है

20 सप्ताह से अधिक आयु के चूजों का पालन: लेयर हाउस कहलाता है

अंडे से चूजा बाहर आने के 48 घंटे तक: ब्रूडर में पहुंचा देना चाहिए

चूजा रखते समय ब्रूडर का प्रथम सप्ताह का तापमान: 35℃

इसके पश्चात प्रति सप्ताह: 3℃ कम करते रहते हैं

बिछावन / लीटर: चूजों के ब्रूडर हाउस पहुंचने से 7 दिन पहले बिछावन को बिछा देना चाहिए

मुर्गी के मांस को: सफेद मांस कहा जाता है जबकि अन्य मांस को लाल मांस कहते हैं

एक व्यस्क व्यक्ति को प्रतिदिन: 60gm प्रोटीन की आवश्यकता होती है जिसमे ⅓ 20gm) पशु जनित होना चाहिए

भाग (20gm) पशु जनित होना चाहिए

मुर्गी व्यवसाय के कुल व्यय का: 60-70% भाग आहार पर खर्च हो जाता है

मुर्गियों में पुराने पंख हटाकर नए पंख आना: विर्मोचन कहलाता है

मुर्गियों में चोंच मारकर आपस में घायल करना: केनाबोलिजसम कहलाता है

1 माह की आयु पर मुर्गियों की ऊपरी चोंच का: ¼ भाग तथा निचली चोंच का ⅛ भाग काट दी जाती है

चोंच काटने का यंत्र: डिबिकट

चोंच काटने की क्रिया: डिबिकिंग कहलाती है

मुर्गियों के पेट एवं आंतों के कीड़ों को मारना: डी- वर्मिंग कहलाता है

इसमें पोटेशियम परमेगनेट: KMNO4 काम में लेते हैं

इसका उपयोग जन्म के: 5-6 माह की आयु पर कर देते हैं

मुर्गे को रासायनिक विधि के द्वारा बँधीयकरण करने के लिए: कौन सा रसायन काम में लेते हैं – डाई इथाइल स्टील वेस्ट्रोल हार्मोन

मुर्गे की गर्दन में चीरा लगाकर: यह हार्मोन रखते हैं

अंडा देने वाली मुर्गी: लेयर्स कहलाती है

लेयर्स के लिए प्रतिदिन दाने की आवश्यकता: 100 से 120 gm

4 माह के पश्चात मुर्गी को: vit A की पूर्ति के लिए हरा चारा खिलाया जाता है

इस हरे चारे में मुख्यतः: मक्का एवं बाजरा होता है

मुर्गी को: 2B आकार के संगमरमर के टुकड़े भी खिलाए जाते हैं

देशी मुर्गी का औसत अंडा उत्पादन: 60 अंडे/ वर्ष

विदेशी मुर्गी का औसत अंडा उत्पादन: 260 अंडे प्रति वर्ष

केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान: इज्जतनगर (उत्तरप्रदेश)

केंद्रीय मुर्गी प्रजनन फार्म: मुंबई, भुवनेश्वर, हैसरगट्टा (बैंगलोर)

राजस्थान मुर्गी प्रजनन फार्म: रामसर (अजमेर)

मुर्गियों की आवासीय व्यवस्था

उठाऊ मकान प्रणाली / फोल्डिंग सिस्टम

आकार: 20×5 फीट

पालन की क्षमता: 18 से 20 मुर्गियों का पालन किया जा सकता है

प्रति पक्षी स्थान की आवश्यकता: 5 वर्गफीट

गहरी बिचाली प्रणाली

मुर्गी पालन की सबसे उपयुक्त विधि है।

इसमें 6 इंच मोटी बिछाली बिछाई जाती है।

फोटो

बिछावना आहाता प्रणाली / स्ट्रायर्ड सिस्टम

50 मुर्गियों हेतु: 3 वर्ग फीट/ पक्षी

100 मुर्गियां: 2 वर्ग फीट/ पक्षी

विशेषता: शहर के समीप महंगी भूमि के लिए सबसे उपयुक्त विधि है।

तार फर्श प्रणाली / वायर फ्लोर सिस्टम

यह प्रणाली सबसे ज्यादा प्रचलित है।

100 मुर्गियों होने पर: 2 वर्ग फीट/पक्षी

100 से अधिक मुर्गियां पर: 1 वर्ग फीट / पक्षी स्थान

पिंजरा या बैटरी प्रणाली / कैग प्रणाली

गांवों के लिए उपयुक्त विधि।

सस्ती विधि।

रोग लगने की संभावना कम होती है।

कम आहार की आवश्यकता होती है।

अंडे में पाए जाने वाले प्रमुख अवयव

संरचना

सम्पूर्ण अंडा: 100%

श्वेतक: 58%

जर्दी: 31%

कवच: 11%

पोषण संबंधी जानकारी

प्रोटीन: 11.8%

वसा: 11%

जल: 66.5%

खनिज लवण: 10.7%

विटामिन: A, B, D

ऊर्जा: 80 कैलोरी प्रति अंडा

मुर्गी के मांस में पाए जाने वाले प्रमुख अवयव

जल: 65 से 80 %

प्रोटीन: 16-22 %

वसा: 1.5 से 13 %

खनिज लवण: 0.65 से 1 %

कार्बोहाइड्रेट: 0.50 से 1.5 %

उत्पति के आधार पर मुर्गियों का वर्गीकरण

भारतीय नस्ले

आसिन: मुर्गियों की लड़ाकू नस्ल

घाघस

चटगांव

कड़कनाथ: मांस काला होता जिसे टेंडर कहते है

चितागोंग

एसियाटिक नस्ले

ब्रह्मा

लेगशन

कोचीन

यह नस्ले प्रजनन के लिए उपयुक्त है

इंग्लिश नस्ले

कार्निश: सिर पर कलंगी पाई जाति है

सेंसेक्स

आस्ट्रलाप

आपिगठन

रेड केप

भूमध्यसागरीय नस्ले / मेडिटेरियन नस्ले

मुर्गी पालन में 80 % योगदान इन्ही मुर्गियों का है

व्यापारिक दृष्टि से सर्वोत्तम नस्ले है

व्हाइट लेग हॉर्न

मिनोरका

एनाकोवा

अमेरिकन नस्ले

रॉड आईलैंड रेड

प्लाई माउथ रोक

न्यू हेम्पशायर

बायडाट

उपयोगिता के आधार पर मुर्गियों का वर्गीकरण

अंडे देने वाली नस्ले

वहाइट लेग हॉर्न

मिनोरका

एनाकोवा

मांस वाली नस्ले

आसिन

ब्रह्मा

सेंसेक्स

लेगशन

द्विप्रयोजनी नस्ले

रॉड आईलैंड रेड

प्लाई माउथ रोक

न्यू हेम्पशायर

आस्ट्रलाप

NOTE

मुर्गी की प्रथम संकर नस्ल = प्रतापधन

MPUAT उदयपुर द्वारा विकसित

क्रोस = रॉड आईलैंड रेड × असिन

व्हाइट लेग हॉर्न

उत्पति स्थान: इटली

1920 ई में भारत आगमन हुआ

विशेषताएं:

  • मेडिटेरेनियन नस्लो में सर्वश्रेष्ठ नस्ल
  • मादा मुर्गियों के टखने काले होते हैं
  • इसकी कलंगी थोड़ी बड़ी होती है
  • व्यापारिक दृष्टि से सर्वोत्तम मांस होता है
  • द्विप्रयोजनी नस्ल है

असील

उत्पति स्थान: लखनऊ

चटगांव

उत्पति स्थान: बंगाल

मिनारका

उत्पति स्थान: स्पेन

मुर्गियों के प्रमुख रोग

रानीखेत रोग

अन्य नाम: न्यू केसल रोग

इस रोग में श्वसन तंत्र एवं तंत्रिका तंत्र प्रभावित होते हैं। यह रोग सर्वाधिक वर्षा ऋतु में फैलता है।

रोग कारक:

  • वायरस टार्टरफ्यूरेन्स
  • वायरस पैरा मिक्सो वायरस टाइप -1

विशेषताएं:

  • पैर, पंखों में लकवा हो जाना
  • आंखों में आंसू आना
  • हाँफते हुए मुँह खोलकर श्वास लेना जिससे सिटी की तरह आवाज आती है
  • रोग की तीव्र अवस्था में पक्षी एक कोने में छिपकर बैठ जाते हैं
  • गर्दन को उलटकर पीठ पर रख लेते हैं
  • चूजे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं

उपचार: स्टेन एफ या लासोटा का टीका

टिके का समय: 1 दिन

प्रतिरक्षा अवधि: 15 सप्ताह तक

प्रयोग विधि: नाक के अंदर से

विश्व में सर्वप्रथम यह रोग न्यू केंसल नामक स्थान पर देखा गया। भारत में सर्वप्रथम पश्चिम बंगाल में देखा गया। अल्मोड़ा के रानीखेत नामक स्थान पर देखा गया।

मुर्गियों का चेचक रोग

अन्य नाम: फ़ाउल पॉक्स

यह रोग कम उम्र की मुर्गियों में अधिक फैलता है। सर्वाधिक गर्मियों में इस रोग का प्रकोप होता है। पूरे जीवनकाल में एक बार ही होता है।

रोगकारक:

  • मुर्गी में बोरिलियोटा एबीयम
  • टर्की में बोरिलियोटा मेडिग्रेसिस
  • कबूतर में बोरिलियोटा कोलुम्बी

लक्षण:

  • शरीर पर फफोले बनते हैं
  • कलंगी, गलकम्बल एवं सिर पर सुखी पपड़ी बन जाती है

उपचार: सिल्वर नाइट्रेट एवं पिकरिक अम्ल का घाव पर घोल लगाया जाता है

टीकाकरण का समय: अप्रैल माह

प्रतिरक्षा अवधि: 6-8 सप्ताह

प्रयोग विधि: पिच्च स्तरक

खूनी पेचिश रोग

अन्य नाम: कोकसीडियोसिस

यह रोग अधिकांश 3 से 12 सप्ताह की आयु में फैलता है।

रोगकारक: इमरिया टेनिला (एक कोशीय प्रोटोजोआ)

लक्षण:

  • खून से सने पतले दस्त आना
  • पंख नीचे की तरफ लुटक जाते हैं
  • पक्षी सुस्त होकर चक्कर काटने लगता है

उपचार: सभी प्रोटोजोआ रोगों का उपचार सल्फर द्वारा किया जाता है।

इस रोग से अचानक दड़बे में चूजे मर जाते हैं।

NOTE: ब्रूडर में अधिक नमी (70% से अधिक) से भी यह रोग हो जाता है।

मुर्गियों का हैजा रोग

यह रोग 12 सप्ताह की आयु पर सर्वाधिक होता है।

उपचार: मुर्गियों के कालरा मांस रस का ब्राथ वैक्सीन

प्रतिरक्षा अवधि: 3 माह

प्रयोग विधि: अंत पेशीय

गले का संक्रमण

यह रोग 1 से 7 दिन के चूजों में सर्वाधिक होता है।

गले से खर खर की आवाज आती है।

टिका: अंडा रूपांतरित IB वेक्सीन प्रथम

प्रतिरक्षा अवधि: फिक्स नहीं

प्रयोग विधि: नाक के अंदर

मैरेक्स रोग

अन्य नाम: M. D. डिजीज

रोगकारक: वायरस

प्रयोग विधि: अंत पेशीय

टीकाकरण: एक सप्ताह की आयु पर

NOTE: गमबोरा रोग मुर्गियों में विषाणु जनित रोग है।

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