Animal Disease
जीवाणु जनित रोग
1.एंथ्रेक्स रोग
2.लँगड़ी रोग
3.थनैला रोग
4.गल घोटु रोग
5.फ़ीडकिया रोग
ट्रिक – एलथ गफी जी
- ए – एन्थ्रेक्स
- ल् – लँगड़ी रोग
- थ – थनैला रोग
- ग – गलघोंटू रोग
- फि – फ़ीडकिया रोग
- जी – जीवाणु जनित रोग
NOTE: पशुओं के सभी रोगों में तापमान बढ़ जाता है (106°F)
अपवाद: मिल्क फीवर रोग या दूध का बुखार रोग में पशुओं के शरीर का तापमान कम हो जाता है (95°F)
अपवाद: मिल्क फीवर रोग या दूध का बुखार रोग में पशुओं के शरीर का तापमान कम हो जाता है (95°F)
NOTE: सभी रोगों में पशु दायीं ओर मुंह करके बैठता है
अपवाद: मिल्क फीवर रोग में पशु बायी ओर मुंह करके बैठता है
अपवाद: मिल्क फीवर रोग में पशु बायी ओर मुंह करके बैठता है
पशुओं में जन्मजात रोग
फ्री मार्टिन
- अढ़ाई / ढाई दिन का बुखार – जीवाणु जनित द्वारा होता
- पिका रोग – पशुओं में फास्फोरस की कमी से होने वाला रोग
एन्थ्रेक्स रोग
अन्य नाम:
जहरी बुखार, गिल्टी रोग, प्लीहा ज्वर, विषहरी, फ़ेफ़डी रोग, तिल्ली रोग, बावला रोग, मिट्ठी जनित पशु रोग
विशेषताएं:
- जुगाली करने वाले पशुओं में अधिक होता है
- यह भेड़ो का प्रमुख रोग है
- यह रोग ऊन की फैक्टरियों में काम करने वाले लोगों में भी फैलता है, इसलिए इसे Wool Sorter’s Disease भी कहते हैं
- इस रोग का प्रकोप सर्वाधिक गर्मियों में होता है
- एकमात्र रोग जो पशुओं से मनुष्य में तथा मनुष्य से पशुओं में फैल सकता है
- यह रोग मुर्गियों में कभी नहीं फैलता है
- रोगी पशु के मरने पर उसे जलाना आवश्यक होता है
रोगकारक:
बेसिलस एंथ्रेसिस नामक बैक्टीरिया से
लक्षण:
- पशु के सभी छिद्रों से काले रंग का बदबूदार स्त्राव निकलता है
- पशु का कांपकर धड़ाम से जमीन पर गिरना
- भेड़े जमीन पर लेटकर दांत किटकिटाने लगती हैं
- गर्भित पशुओं में गर्भपात हो जाता है
- शरीर का तापमान 105°F से 107°F तक बढ़ जाता है
उपचार:
- सल्फामिडिन – 10 ml अंत शिरा इंजेक्शन
- डोकसोना – 3 ml अंत शिरा इंजेक्शन
- टाईसिन – 15 ml अंत शिरा इंजेक्शन
टिका:
- टीका – एन्थ्रेक्स स्पोर वैक्सीन (1 ml अंत त्वचिय)
- समय – प्रतिवर्ष जून माह में
NOTE: एन्थ्रेक्स में पशु का पोस्टमार्टम नहीं करते हैं।
लँगड़ी पशु रोग
अन्य नाम:
जहारवाद, फड़ सृजन, चुरचूरिया, ब्लैक क़वार्टर
लक्षण:
- पशु अगले कंधे व पिछले पुठे से लँगड़ा हो जाता है
- 4 माह से 3 वर्ष की आयु में अधिक होता है
- यह गाय, भेंस एवं भेड़ में सर्वाधिक होता है
- इस रोग का सर्वाधिक प्रकोप ‘वर्षा ऋतु’ में होता है
- पशु लंगड़ाकर चलता है
- पुट्ठे में सूजन पहले गर्म व दर्द वाली तथा बाद में ठंडी व दर्द रहित होती है
- तापमान 104°F – 106°F
रोगकारक:
क्लोस्ट्रीडियम शोबियाई जीवाणु द्वारा
NOTE: कभी क्लोस्ट्रीडियम सेप्टिक द्वारा भी हो जाता है
उपचार:
- दर्द के लिए निमोवेट इंजेक्शन 15 ml अंत पेशी
भारत में टिका:
- पोलिवेलेंट फार्मलीनाइज्ड एनाक्लचर वैक्सीन (06 माह की उम्र पर लगाते)
- BQ पोलिवेलेंट
NOTE: टिका लगाने का उपयुक्त समय जून माह में है।
थनैला रोग
अन्य नाम:
स्तन शोध, अयन की शीत, मेसटाईटिस, गार्गेट, उष्म थनैली (यूरोप में कहते)
लक्षण:
- यह अधिक दूध देने वाली मादा पशुओं में होता है
- मुख्यतः गाय, भैंस और बकरी में होता है
- गाँव की अपेक्षा शहर में तथा भैंसों की अपेक्षा गायों में अधिक होता है
- इस रोग में पशु की मृत्यु नहीं होती है
- आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक नुकसानदायी रोग है
- थनैला रोगी पशु के दूध के सेवन से महिलाओं में गर्भपात की बीमारी हो सकती है
रोगकारक:
- गाय व भैंस में – स्ट्रेप्टोकोकाई एगेलेक्शिया जीवाणु
- भारत में मुख्यतः – स्टेफीलोकोकाई द्वारा
- दूध न देने वाले पशु में – कोरिने बैक्टीरियम पायोजिन्स द्वारा
उपचार:
- मेस्टिटिस वैक्सीन द्वारा
NOTE: इस रोग के लिए ‘स्ट्रीट कप’ टेस्ट किया जाता है।
गलघोंटू रोग
अन्य नाम:
घुड़का, घोटुआ, घुरर्खा, नाविक ज्वर, हीमोरेजेनिक सेप्टिसिनिया पशु रोग
लक्षण:
- सर्वाधिक प्रकोप भैंसों में होता है
- यह रोग जुगाली करने वाले पशुओं में अधिक होता है
- कम आयु के पशुओं में अधिक होता है
- इस रोग का सर्वाधिक प्रकोप ‘वर्षा ऋतु’ में होता है
- लम्बी दूरी तय करने के कारण भी यह रोग हो सकता है, इसलिए इसे ‘शिपिंग फीवर’ भी कहते हैं
- शरीर का तापमान 105°F – 107°F
- सबसे जल्दी मृत्यु इसी रोग में होती है (6-8 घंटे)
- पशु जमीन पर गिर जाते हैं, कान, मुँह, नाक से लार टपकती है
रोगकारक:
- गायों में – पाश्च्युरेला बॉबीसेप्टिका मलटोसिडा
- भैंसों में – पाश्च्युरेला बूबेलिसेप्टिका मलटोसिडा
- भेड़, बकरी में – पाश्च्युरेला ओविस हिमोलेटिका
उपचार:
- हीमोरेजेनिक सेप्टिसिनिया वैक्सीन (H.S. वैक्सीन) का टीका
- टिके का समय – मई जून माह में
- पहला टिका – 6 माह की आयु पर लगाते
- स्वस्थ पशुओं में गलघोंटू का टीका – कम्पोजिटी ब्राथ वैक्सीन
NOTE: इस रोग का बैक्टीरिया सर्वप्रथम बोलिगर (1878) तथा किट (1885) ने यूरोप में देखा था।
फ़ीडकिया रोग
अन्य नाम:
फडक्या रोग, इंटरोटॉक्सिनिया पशु रोग
लक्षण:
- इस रोग का प्रकोप सर्वाधिक वर्षा ऋतु में होता है
- यह रोग सर्वाधिक भेड़ एवं बकरियों में होता है
- यह रोग अधिक हरा चारा खाने से होता है
- कमर धनुष की तरह मुड़ जाती है
- पशु बार-बार उठती बैठती है
- पशु बार-बार पेट की तरफ देखकर लात मारता है
- पशु लेटे हुए पैरों को साइकिल की तरह चलाता है
- भेड़ें रात को स्वस्थ तथा सुबह मरी हुई मिलती हैं
रोगकारक:
- क्लोस्ट्रीडियम बेलशियाई टाइप डी
- क्लोस्ट्रीडियम परफरिंजेन्स नामक जीवाणु
उपचार:
- इंटरोटॉक्सिनिया वैक्सीन (E T वैक्सीन टाइप डी) 2.5 ml अंत त्वचीय
विषाणु जनित पशु रोग
1. पशु प्लेग
अन्य नाम: रिंडर पेस्ट, मालवारी, कैटिल प्लेग, पौकनी, पकवेदन, पिचिनाव, बसन्तु, पेचा, मनरोग, गतहाई, शीतल, पकतालक्षण:
- यह रोग सूखे मौसम में अधिक होता है।
- स्थानांतरण के समय गायों की अपेक्षा भैंसों में अधिक होता है।
- शरीर का तापमान 104-107 °F।
- गोबर सख्त एवं बाद में पतला खून मिला हुआ होता है।
- आंखों से पानी बहता है।
- रोग ग्रसित पशु कुछ वर्षों बाद पुनः इस रोग से ग्रसित हो सकता है।
उपचार:
- एंटी पशु प्लेग सीरप का इंजेक्शन (रिन्डर पेस्ट टिका) (RP टिका)।
- टिका – जून माह में लगाया जाता है।
- प्रतिरक्षा – 03 वर्ष।
- GTV – goat tiesu vaccine का टीका, जिसे 1926 में IVRI इज्जतनगर में एड्वर्ड नामक वैज्ञानिक ने तैयार किया।
- लेपिनाइज्ड वायरस वैक्सीन – इसको खरगोश के शरीर में तैयार किया गया है।
- पक्षीय वायरस वैक्सीन – मुर्गी के अंडे में तैयार किया जाता है।
NOTE – 2011 में सयुंक्त खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा भारत को पशु प्लेग मुक्त देश घोषित किया गया।
2. खुरपका – मुंहपका
अन्य नाम: एफथस ज्वर, मेलिगनेट एपेथा, एपिजुटिक एफशा, पका, खंगवा, FMD (foot mouth disease)लक्षण:
- 105-106 °F तक बुखार।
- दूध उत्पादन में अचानक कमी हो जाती है।
- मुँह से लार गिरना।
- पशुओं में तीव्र फैलने वाला संक्रामक रोग है।
उपचार:
- FMD पोली केट वैक्सीन का टीका।
- इस रोग का टीका वर्ष में 02 बार (जून व दिसम्बर) लगाया जाता है।
- पैरो पर नीला थोथा लगाना।
- पशुओं को पाद स्नान कराना।
C. चयापचयी पशु रोग
1. दुग्ध ज्वर
अन्य नाम: प्रसवकालीन, मिल्क फीवर, प्रसवकालीन रक्त मूर्छा, प्रसवकालीन पक्षाघात, हाइपोकेल्शिमियालक्षण:
- एकमात्र रोग जीसमे शरीर का तापमान कम होता है।
- आंखों की पुतलियों फैलकर बड़ी हो जाती हैं।
- शरीर ठंडा होने के बावजूद भी पसीना आता है।
- पशु मुँह बायीं ओर करके बैठ जाते हैं।
रोगकारक: केल्सियम की कमी के कारण। यह रोग अधिक दूध देने वाले पशुओं में होता है, मुख्यतः 3 – 5 ब्यात में होता है।
रोकथाम:
- 30 ml यूनिट की मात्रा विटामिन डी ब्याने से पूर्व 7 वे दिन से तीसरे दिन रोज देना चाहिए।
- कैल्शियम की गोलियां。
- कैल्शियम बौरो ग्लूकोनेट 500 ml अन्तः शिरा。
2. चिचड़ी ज्वर –
अन्य नाम: रक्त मूत्र रोग, पाइरो प्लाज्मोलीस, टेक्सास फीवर, बेबीसीआसिस, टिका फीवर, रेड वाटर रोगलक्षण:
- भूख में कमी, वजन में कमी, खून में कमी, दूध उत्पादन में कमी।
- इस रोग में मूत्र में एल्ब्यूमिन आने लगता है।
- बेबीसीआ बरबरा
- बेबीसीआ मेजर
- बेबीसीआ बोविस
- बेबीसीआ अर्जेंटाइना
- बेबीसीआ बाइजेमिना – भारत में मुख्य रूप से यह र ोग इससे फैलता है।
उपचार:
- शरीर पर पेस्ताबान लगाकर
- ट्रिपेन ब्ल्यू का अंत शिरा इंजेक्शन
- बेवसान का इंजेक्शन
- बेरेनिल की दवा
- सल्फ़र की दवा
ऊंट के रोग
1. सर्रा रोग – पशु रोग
अन्य नाम: गलत्या (पश्चिमी राजस्थान में कहते है), त्रिवर्षा, सड़त्यालक्षण:
- पशु सिर दीवार या जमीन पर मारता है।
- पशु पागल की तरह घुमता है।
- पशु बार बार जगह बदलता है।
- यह रोग तीन वर्ष तक रहता है उसके बाद मृत्यु हो जाती है।
उपचार:
- ट्रिपनोसोमा वैक्सीन का टीका अप्रेल माह में लगाते हैं।
- बेरेनिल, ट्राईक्वीन ओर एनोरेक्सन का इंजेक्शन लगाते हैं।
2. खुलली रोग – पशु रोग
अन्य नाम: इसे राजस्थान में गाट एवं पाव कहा जाता है, सिंधी में गार कहा जाता है।लक्षण:
- चमड़ी सख्त एवं काली पड़ जाती है।
उपचार:
- मेलाथियान 50% का 1% घोल